Diwali 2024: जैसी मनोकामना, वैसा स्वरूप कमलवासिनी को अर्पित करते हैं भक्त

इंदौर शहर में महालक्ष्मी का मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना के अनुसार आकृति भेंट करते हैं। जो भक्त मां लक्ष्मी से उनका मकान होने की कामना करते हैं वो यहां मकान की और जो कार लेने की कामना करते हैं वो कार की आकृति माता को भेंट करते हैं।

इंदौर शहर की हदय स्थली राजबाड़ा स्थित महालक्ष्मी मंदिर वर्षों से भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां भक्त जैसी मनोकामना हो माता को मिट्टी या प्लास्टिक से बने स्वरूप को अर्पित करता है। मकान के लिए मकान और कार के लिए कार की आकृति भेंट की जाती है।

साथ ही यहां दीपावली पर हजारों श्रद्धालु पहुंचकर माता को पीले चावल भेंटकर घर में वर्षभर सुख-समृद्धि का वास रहे इसलिए आमंत्रित करते है। यहां विराजित स्वरूप कमलवासिनी और गज लक्ष्मी है। कमल की आकृति पर विराजमान मां के आसपास सुख-समृद्धि का प्रतीक दो हाथी है। ढाई फीट उंची प्रतिमा की स्थापना 191 साल पहले 1833 में की गई थी।

पीले चावल देकर माता को आमंत्रित करते हैं

माता की सेवा कर रहे परिवार की पांचवीं पीढ़ी के पुजारी भानुप्रकाश दुबे कहते हैं कि यहां हर साल दीपावली पर पीले चावल देकर माता को आमंत्रित कर घर ले जाने के लिए 50 हजार से ज्यादा भक्त जुटते हैं। साथ ही जैसी मनोकामना हो वैसे स्वरूप को अर्पित करते हैं। दीपावली पर महिला-पुरुषों की एक-एक किलोमीटर लंबी कतारे सुबह से देर शाम तक लगती है।

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यहां से माता के साथ होने के भाव के साथ भक्तों द्वारा घर में कुम-कुम से पदचिन्ह बनाकर माता का प्रवेश घर के पूजन स्थल पर कराया जाता है। इसके बाद शुभ मुहूर्त में पूजन होता है। इसके अतिरिक्त यहां माता को अर्पित चावल कई भक्त बरकत के लिए अपने घर ले जाकर तिजोरी और दुकान के गल्ले में भी रखते हैं।

हर साल देश-विदेश से आते भक्त

  • नवरात्र से दीपावली तक माता का एक माह तक तीन बार शृंगार होता है। दीपावली पर स्वर्ण आभूषण और स्वर्ण मुकुट पहनाए जाते हैं। मंदिर में फूल बंगला सजाकर छप्पन भोग लगाया जाता है। दर्शन की व्यवस्था चलित होती है।
  • हर साल करीब 50 किलो से अधिक चावल एकत्रित हो जाता है। इस चावल को बरकत रूप के में देने के बाद शेष को जरूरतमंदों बांट दिया जाता है।साथ ही भगवान गणेश और रिद्धि-सिद्धि की मूर्ति काले पत्थर की है।

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  • मंदिर का निर्माण राजा हरिराव होलकर ने कराया था। उस समय तीन तल वाला मंदिर था जो आग के कारण तहस-नहस हो गया था। 1942 में मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार कराया गया था। इसके बाद 9 साल पहले भी जीर्णोद्धार कर नवीन स्वरूप दिया गया।
  • इंदौर से देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेश में बसे भक्त जब भी इंदौर आते है तो माता के दर्शन के लिए अवश्य आते हैं। दीपावली पर इनकी संख्या सैकड़ों में होती है। इसके अतिरिक्त हर दिन आठ से 10 भक्त वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिए माता के दर्शन करते हैं।

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