ग्वालियर में तानसेन की समाधि पर इमली का पेड लगा है। कहा जाता है कि तानसेन बचपन में बोल नहीं पाते थे तो इमली के पेड की पत्तियां चबाते थे जिससे न केवल वे बोलने लगे, बल्कि उनका गला भी सुरीला हो गया। इसी के चलते यहां आने वाले संगीज्ञ इस पेड पत्तियां चबाते हैं। हालांकि पुराना पेड नहीं है, उसकी जगह नया पेड् लगा है।
तानसेन भी इसी इमली के पेड़ के नीचे रियाज किया करते थे और इमली की पत्तियों का सेवन करते थे। तानसेन की समाधि पर माथा टेकने के लिए आने वाला हर साधक इमली की पत्तियां चबाता है। इस धारणा के कारण इमली के पेड़ का अस्तिव ही समाप्त हो गया। इसी स्थान पर इमली का एक नया पेड़ अंकुरित हुआ है। अब साधक इस पेड़ की पत्तियों का सेवन करते हैं।
संगीतज्ञों के केंद्र में रहता है इमली का पेड़
तानसेन समारोह की तैयारियां समाधिस्थल पर शुरु हो गई हैं। तानसेन समारोह का शताब्दी वर्ष होने के कारण देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। वहीं देश-विदेश के संगीतज्ञ तानसेन समारोह में भाग लेने व संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर आने की तैयारी कर रहे हैं। सुर-साधक तानसेन के जीवन से जुड़े रहस्यों को जानने के लिए संगीत साधक गूगल इंजन भी सर्च कर रहे हैं। तानसेन की समाधि पर लगे इमली के पेड़ से जुड़ी किवदंतियों को भी संगीतज्ञ जानने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि उन्हें इमली के गुण-धर्म पता हैं, लेकिन यहां मामला आस्था और विश्वास से जुड़ा हुआ है।
इमली के पेड़ का अस्तिव ही समाप्त हो गया
तानसेन की समाधि पर लगे इमली के पेड़ की देश-विदेश में इतनी ख्याति रही कि बड़े-बड़े संगीतकार आस्था और विश्वास के साथ तानसेन की समाधि पर माथा टेकने के बाद इमली के पेड़ की पत्तियां चबाना नहीं भूलते। गले का रोग ठीक होने की धारणा के कारण स्थानीय लोग पत्तियों के साथ, पेड़ की डालियां तक खोदकर सेवन कर गए। जिसके कारण इस बहुचर्चित पेड़ का अस्तिव ही समाप्त हो गया।
इमली का दूसरा पेड़ अंकुरित हुआ
समाधि के पास उसी स्थान पर इमली का दूसरा पेड़ अंकुरित हो चुका है। इस पेड़ के पास शिलापट्टिका भी लगी हुई है। जिसमें इमली के पेड़ की धारणा का भी उल्लेख है। आज भी लोग इमली के इस पेड़ की पत्तियां खाने के लिए उत्सुक रहते हैं।
इसलिए चर्चित है इमली का पेड़
तानसेन का जन्म ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ऐसी किवदंती है कि बचपन में तानसेन को बोलने में कुछ परेशानी थी। उनके माता-पिता मोहम्मद गौस के पास लेकर गए और यहीं उन्होंने संगीत की साधना शुरु की। तानसेन जब कुछ बड़े हुए तो बोलने लगे, लेकिन उनकी आवाज सुरीली नहीं हो रही थी। इमली के पेड़ की कहानी यह है कि तानसेन अपनी आवाज सुरीली बनाने के लिए इमली के इसी पेड़ के पत्तों को चबाते थे। यही कारण है कि आज भी संगीतकार इमली के इस पेड़ की पत्तियों को खाते हैं।