मध्य प्रदेश के इंदौर में 45 साल पुराने केस में नगर निगम की जीत हुई है। 6.7 एकड़ जमीन पर चल रही कानूनी लड़ाई में वक्फ बोर्ड का दावा खत्म हो गया है। जमीन को नगर निगम के हवाले कर दिया गया है।
जिला अदालत ने इंदौर में करबला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन को वक्फ संपत्ति बताये जाने का दावा खारिज कर दिया है। अदालत ने नगर निगम को इस बेशकीमती भूमि का मालिक घोषित कर दिया है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने मंगलवार को अदालत के इस फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस विवादित जमीन को लेकर 1979 से कानूनी लड़ाई चल रही थी। इसमें अब नगर निगम को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है।
भार्गव ने बताया कि करबला मैदान पर अवैध कब्जा रोकने को लेकर नगर निगम का दायर मुकदमा एक दीवानी अदालत ने 2019 में खारिज कर दिया था। इसके बाद नगर निगम ने इस फैसले को जिला न्यायालय में चुनौती दी और मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड, करबला मैदान समिति एवं मुस्लिम पक्ष के अन्य लोगों को प्रतिवादी बनाया गया। जिला न्यायाधीश नरसिंह बघेल ने नगर निगम की अपील स्वीकार करते हुए 13 सितंबर को पारित फैसले में कहा कि प्रतिवादी लोग यह बात साबित करने में असफल रहे हैं कि विवादित जमीन एक वक्फ संपत्ति है।
अदालत ने होलकर राजवंश के शासनकाल में प्रचलित इंदौर नगर पालिक अधिनियम 1909 और मध्य भारत नगर पालिका अधिनियम 1917 से लेकर होलकर रियासत के भारत संघ में विलय के बाद बने नगर पालिक अधिनियम 1956 के प्रावधानों की रोशनी में नगर निगम को करबला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन का मालिक घोषित किया। जिला न्यायालय में नगर निगम की ओर से कहा गया कि इन कानूनों में एक जैसा प्रावधान है कि सरकारी और निजी संपत्तियों को छोड़कर शहर की सभी खुली भूमियां नगर निगम की संपत्तियों में निहित हो जाएंगी।
प्रतिवादियों ने अदालत में कहा कि पूर्ववर्ती होलकर शासकों ने करबला मैदान की जमीन मोहर्रम पर ताजिये ठंडे करने के लिए आरक्षित कर दी थी जहां मस्जिद भी बनी हुई है। मुस्लिम समुदाय का दावा था कि इस जमीन पर उसका कब्जा करीब 200 साल से लगातार बना हुआ है। हालांकि अदालत अपने फैसले में तथ्यों पर गौर करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पिछले 150 साल से इस जमीन के एक हिस्से का उपयोग ताजिए ठंडे करने के धार्मिक कार्य के लिए होता आ रहा है।

