मंदसौर था मंदोदरी का मायका.
जहां एक ओर देशभर में दशहरा उत्सव की धूम है. जगह-जगह लंकाधिपति रावण के पुतले जलाए जाएंगे. मगर मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में रावण की पूजा होगी. फिर उसका वध. रावण का पुतला यहां नहीं जलाया जाता. बताया जाता है कि नामदेव छिपा समाज लंका नरेश रावण की पत्नि मंदोदरी को अपनी बहन बेटी मानता है. इसी कारण रावण को यहां पर जमाई का दर्जा दिया हुआ है.
शहर का दामाद होने के कारण महिलाएं प्रतिमा के सामने घूंघट में जाती हैं. सुबह पांव में लच्छा बांधकर उसकी विद्ववता की पूजा की जाती है. शाम को उसके अहंकार के लिए उसका वध किया जाता है. बस पुतला नहीं फूंका जाता.
रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका है मंदसौर
नामदेव समाज रावण की प्रतिमा की शहर के खानपुरा में बनी रावण प्रतिमा की पूजा-अर्चना करता है. 210 सालों से भी अधिक समय से समाजजन रावण प्रतिमा की पूजा करते आ रहे हैं. इतना ही नहीं यहां पर रोगों से दूर रहने के साथ मनोकामना लेकर भी कई लोग आते हैं.
परंपरा का महत्व
- माना जाता है- मंदसौर का असली नाम दशपुर था. यह मंदोदरी का मायका था, इसलिए रावण यहां का दामाद बना.
- लोग रावण को प्रकांड विद्वान और शिवभक्त मानते हैं, इसलिए उसकी अच्छाइयों के लिए पूजा की जाती है.
- महिलाएं रावण की प्रतिमा के पैर में धागा बांधकर और स्वास्थ्य संबंधी मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करती हैं.
दशहरे पर परंपराएं
दशहरे के दिन सुबह रावण की प्रतिमा के समक्ष क्षमा याचना की जाती है कि सीता हरण जैसे गलत कार्य के कारण उसका वध किया जाएगा. सुबह पूजा अर्चना की जाती है, और महिलाएं घूंघट निकालकर उसे दामाद के तौर पर सम्मान देती हैं. शाम को रावण का सांकेतिक वध किया जाता है, जिससे यह संदेश मिलता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत होती है.
अनोखी प्रतिमा
मंदसौर में रावण की एक विशालकाय प्रतिमा भी स्थापित है, जिसकी पूरे साल पूजा की जाती है. कुछ जगहों पर रावण के 10 मुखों की जगह 9 मुख बनाए गए हैं, जिसके ऊपर गधे का सिर लगाया गया है, जो बुद्धिमानी के भ्रष्ट होने का प्रतीक है.