भारत में बना आईफोन
एप्पल, जो कभी सिर्फ अमेरिका और चीन में प्रोडक्शन के लिए जाना जाता था, अब भारत में अपना दायरा तेजी से बढ़ा रहा है. एक समय था जब भारत को सिर्फ एक बाज़ार के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब Apple के लिए यह एक बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनता जा रहा है. ताज़ा जानकारी के अनुसार, Apple ने भारत में अपनी सप्लाई चेन से 45 से अधिक कंपनियों को जोड़ लिया है. इनमें भारतीय कंपनियों के साथ-साथ अमेरिकी और कुछ चीनी कंपनियों के पार्टनर्स भी शामिल हैं.
Apple की भारतीय कंपनियों में दिलचस्पी
ET की एक रिपोर्ट के अनुसार, Apple अब सिर्फ बड़े कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स जैसे Foxconn, Wistron और Pegatron पर निर्भर नहीं है, बल्कि भारत की घरेलू कंपनियों को भी अपने इकोसिस्टम में जगह दे रहा है. टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स, विप्रो पारी, मदरसन, सैलकॉम्प, हिंडाल्को और भारत फोर्ज जैसी जानी-मानी कंपनियां अब iPhone निर्माण की चेन का हिस्सा बन चुकी हैं. इसके अलावा 20 से ज्यादा MSMEs यानी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को भी जोड़ा गया है जो एक बड़ा बदलाव है.
3.5 लाख नौकरियों का सृजन
ET ने अपना एक रिपोर्ट में मामले से जुड़े अधिकारी के हवाले से बताया कि इन कंपनियों के जुड़ने से भारत में अब तक करीब 3.5 लाख नई नौकरियां पैदा हुई हैं, जिनमें से 1.2 लाख लोग सीधे iPhone निर्माण में कार्यरत हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि Apple का भारत में बढ़ता निवेश न केवल टेक्नोलॉजी को ला रहा है, बल्कि रोजगार के भी नए अवसर खोल रहा है.
5 में से 1 iPhone भारत में बना
आज Apple के कुल iPhone प्रोडक्शन में से करीब 20% यानी हर 5 में से 1 iPhone भारत में बनता है. यह आंकड़ा सिर्फ PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना के बाद का है. तमिलनाडु और कर्नाटक की फैक्ट्रियों में ये iPhones बनते हैं, जबकि सप्लाई चेन महाराष्ट्र, यूपी, गुजरात, आंध्र प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में फैली हुई है.
76% प्रोडक्शन हुआ एक्सपोर्ट
Apple ने 2021-22 से 2024-25 के बीच भारत में $45 बिलियन (लगभग ₹3.75 लाख करोड़) के iPhones बनाए, जिनमें से 76% iPhones को विदेशों में एक्सपोर्ट कर दिया गया। भारत का स्मार्टफोन एक्सपोर्ट अब इतना बड़ा बन गया है कि यह देश का नंबर 1 एक्सपोर्ट आइटम बन गया है, जो 2015 में 167वें स्थान पर था।
चीन से दूरी, भारत की तरफ रुख
Apple ने पहले चीन की कंपनियों को भारत लाकर शुरुआत की थी, लेकिन 2020 में गलवान झड़प के बाद उसने रणनीति बदल दी. अब वह ज्यादातर गैर-चीनी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहा है. यह कदम भारत सरकार की FDI नीति (Press Note 3) के चलते और भी अहम हो गया, जिसमें चीन जैसे देशों से निवेश पर सख्त शर्तें हैं.