मध्य प्रदेश में अब ‘देसी’ हो गए चीते, रास आया हवा-पानी

मध्य प्रदेश में अब ‘देसी’ हो गए चीते, रास आया हवा-पानी

मध्य प्रदेश में चीता पुनर्वास परियोजना के तीन साल पूरे हो गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 में कूनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़ा था। चीतों ने यहां की जलवायु को अपनाया, शावकों का जन्म हुआ। अब मंदसौर के गांधीसागर अभयारण्य में भी चीते शिफ्ट किए जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी चीता पुनर्वास परियोजना के तीन वर्ष बुधवार को पूरे होने जा रहे हैं। देश में 70 साल बाद चीतों की पुनर्स्थापना मप्र में श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर, 2022 को स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। प्रथम चरण में नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे, जिन्हें पार्क के बाड़े में प्रधानमंत्री ने छोड़ा था।

द्वितीय चरण में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाकर यहां छोड़े गए थे। तब बड़ी चिंता थी कि चीते यहां की जलवायु में रह पाएंगे या नहीं? शुरुआती कठिनाइयों के बीच चीतों ने खुद को यहां के अनुकूल ढाल लिया। उनका कुनबा भी बढ़ा। चीतों को यहां की आबोहवा (हवा-पानी) रास आ गई। अफ्रीकी चीते भी ‘देसी’ हो गए। लिहाजा उन्हें दूसरी जगहों पर भी बसाए जाने के बारे में सोचा जाने लगा। प्रदेश का गांधीसागर अभयारण्य(मंदसौर) चीतों का दूसरा रहवास बना।

गांवों के लोगों ने चीतों के व्यवहार को समझ लिया

चीतों को लंबे समय तक कूनो पार्क के बाड़े में रखने के बाद खुले जंगल में छोड़े जाने पर कई चुनौतियां भी सामने आईं। चीतों ने कई बार जंगल की सीमा लांघी। राजस्थान व उत्तर प्रदेश की सीमा तक पहुंचे। कभी खुद लौटे तो कभी उन्हें बेहोश(ट्रेंकुलाइज) कर लाना पड़ा। जंगल में चीते पारंपरिक शिकार करने लगे। जंगल के बाहर भी गांवों के लोगों ने चीतों के व्यवहार को समझ लिया है। चीतों की अब नई खेप लाने की भी तैयारी चल रही है। इसके लिए बोत्सवाना, केन्या और दक्षिण अफ्रीका से भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम की चर्चा चल रही है।

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शुरुआत में जब चीतों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो यह बात सामने आई थी कि पचास प्रतिशत चीतों की मौत संभावित हो सकती है। अब धारणा बदल चुकी है। मुख्य वन संरक्षक उत्तम कुमार का कहना है कि अभी चीतों की उत्तरजीविता को लेकर आंकड़ा नहीं बताया जा सकता है, यह स्थिति आठ से दस साल बाद सामने होगी। री-इंट्रोडक्शन प्रोग्राम में अभी चीतों की निगरानी की जा रही है, उनकी देखरेख जारी है। यहां चीतों का जन्म हो रहा है, वे माहौल में ढ़लते जा रहे हैं।

आज एक मादा चीता छोड़ी जाएगी गांधीसागर अभयारण्य में

प्रदेश में चीतों के दूसरे रहवास गांधीसागर अभयारण्य में नर चीता पावक और प्रभास को 20 अप्रैल को छोड़ा गया था। बुधवार को चीता परियोजना के तीन वर्ष पूरे होने पर यहां मादा चीता धीरा को शिफ्ट किया जाएगा। ताकि गांधीसागर में भी चीतों की वंशवृद्धि हो सके। धीरा दक्षिण अफ्रीका से कूनो पार्क लाई गई थी।

बुधवार को धीरा को विशेष वाहन से राजस्थान के कोटा-झालावाड़ होते हुए मंदसौर के गांधी सागर अभयारण्य ले जाया जाएगा। 360 किमी की दूरी करीब आठ घंटे में पूरी होगी। बुधवार शाम तक धीरा को गांधीसागर अभयारण्य में छोड़ दिया जाएगा।

पिछले वर्ष जन्मे थे 11 शावक

प्रदेश में चीतों की कुल संख्या 27 है। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए कुल 20 चीतों में से नौ की मौत हुई थी। 11 जीवित चीतों में से नौ (छह मादा व तीन नर) कूनो में व दो (नर) गांधीसागर में हैं। अभी तक भारत की धरती पर कुल 26 शावक जन्मे है, जिनमें 10 की मौत हो चुकी है। पिछले साल 11 शावक जन्मे थे। इस साल अभी तक पांच शावकों का जन्म हुआ।

चीतों ने यहां के माहौल को अपनाया

चीता प्रोजेक्ट को तीन साल पूरे हो रहे हैं, इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की यह सफलता है कि चीतों ने यहां के माहौल को अपनाया है। यहां लगातार चीतों का जन्म हुआ यह सबसे सकारात्मक संकेत हैं। -उत्तम कुमार शर्मा, सीसीएफ व निदेशक कूनो पार्क।