मौलाना अरशद मदनी.
वक्फ (संशोधन) कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज (सोमवार 15 सितंबर) अपना अंतरिम फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. हालांकि तीन धाराओं पर अंतरिम रोक लगा दी. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पूरे कानून को रद्द करने की कोई जरूत नहीं है, लेकिन नए कानून की कुछ धाराएं ऐसी हैं जिन्हें कानूनी संरक्षण देना आवश्यक है. 22 मई को इस मामले पर विस्तृत सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
इस बीच जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का बयान सामने आया है. उन्होंने कोर्ट केफैसले का स्वागत किया और अदालत का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा कि नए कानून की जिन धाराओं को लेकर पूरे देश के मुसलमानों की ओर से चिंताएं और गंभीर आशंकाएं जताई जा रही थीं, अदालत ने उन्हें गंभीरता से महसूस किया और उनमें से तीन धाराओं पर अंतरिम रोक लगा दी.
‘नया वक्फ कानून देश के संविधान पर हमला’
मौलाना मदनी ने कहा कि अभी हमारी लड़ाई समाप्त नहीं हुई है. जमीयत उलमा-ए-हिंद इस काले कानून के निरस्तीकरण तक अपनी कानूनी और लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रखेगी. उन्होंने कहा कि यह नया वक्फ कानून देश के संविधान पर सीधा हमला है, जो नागरिकों और अल्पसंख्यकों को न केवल समान अधिकार प्रदान करता है बल्कि उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता भी देता है.
‘धार्मिक आजादी छीन लेने की साजिश’
अध्यक्ष ने कहा कि यह कानून मुसलमानों की धार्मिक आजादी छीन लेने की संविधान-विरोधी एक खतरनाक साजिश है.उन्होंने कहा कि इसलिए जमीयत उलमा-ए-हिंद ने वक्फ कानून 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उन्होंने कहा कि हमें यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट इस काले कानून को समाप्त करके हमें पूर्ण संवैधानिक न्याय देगा.
मौलाना मदनी ने वकीलों का किया शुक्रिया
मौलाना मदनी ने अपने वकीलों, विशेष रूप से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल का शुक्रिया अदा किया और कहा कि हमारे वकीलों ने ठोस बहस करके अदालत को यह समझाने में सफलता पाई कि वक्फ कानून में किए गए संशोधन न केवल वक्फ संपत्तियों के लिए खतरनाक हैं बल्कि ये असंवैधानिक भी हैं और इस तरह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर गहरी चोट पहुंचाई गई है.
कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर लगाई रोक
दरअसल नए कानून में कहा गया था कि वही व्यक्ति वक्फ कर सकता है जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम पर अमल कर रहा हो. अदालत ने इस प्रावधान पर रोक लगा दी और कहा कि जब तक राज्य सरकारें इस बारे में कोई प्रक्रिया तय नहीं करतीं, तब तक इस शर्त पर अमल नहीं किया जाएगा.
नए कानून में सभी अधिकार जिला कलेक्टर को दे दिए गए थे यानी किसी वक्फ संपत्ति पर विवाद की स्थिति में कलेक्टर को पूरा अधिकार था कि वह तय करे कि विवादित संपत्ति वक्फ है या नहीं. कोर्ट ने इस पर भी रोक लगाई और कहा कि जब तक ट्रिब्यूनल या अदालत से कोई फैसला नहीं होता, तब तक विवादित वक्फ संपत्ति में कोई छेड़छाड़ नहीं होगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक विवाद का समाधान नहीं हो जाता, कोई भी पक्ष किसी तीसरे पक्ष को अधिकार हस्तांतरित नहीं कर सकता. कोर्ट ने साफ कहा कि कमिश्नर को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह किसी संपत्ति के मालिकाना हक का निर्धारण करे.
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या चार से अधिक नहीं होगी और राज्य वक्फ बोर्डों में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे. कोर्ट ने राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सीईओ की नियुक्ति पर तो रोक नहीं लगाई, लेकिन इस पर जोर दिया कि जहां तक संभव हो, मुस्लिम सीईओ की नियुक्ति की जानी चाहिए. कोर्ट ने रजिस्ट्रेशन की शर्तों में कोई दखल नहीं दिया और कहा कि वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण पहले भी होता रहा है.
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने पढ़ा फैसला
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने स्वयं पढ़ा, उन्होंने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में ही अदालत किसी कानून पर रोक लगा सकती है या उसे रद्द कर सकती है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पूरे कानून को चुनौती दी गई थी, लेकिन कुछ धाराओं को लेकर यह चुनौती बहुत अहम थी.
कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस बात पर सहमति जताई कि वक्फ बाय-यूज समेत किसी भी वक्फ संपत्ति को, जिसका ऐलान नोटिफिकेशन या पंजीकरण के जरिए किया गया हो, उसे डी-नोटिफाई नहीं किया जाएगा और न ही उसकी हैसियत या स्थिति में कोई बदलाव किया जाएगा.