क्या RBI के ब्याज घटाने पर भी दिखेगा ट्रंप टैरिफ का असर, कल होगा बड़ा फैसला

क्या RBI के ब्याज घटाने पर भी दिखेगा ट्रंप टैरिफ का असर, कल होगा बड़ा फैसला
अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ के झटके से बुधवार को केंद्रीय बैंक के ब्याज दरों के फैसले पर सवालिया निशान लग गया है, क्योंकि कुछ अर्थशास्त्री दरों में ढील की उम्मीदें जता रहे हैं. ट्रंप की घोषणा से पहले, ज़्यादातर अर्थशास्त्रियों को जून की नीतिगत बैठक में गवर्नर के सतर्क रुख के बाद दरों में कोई बदलाव नहीं होने की उम्मीद थी. ब्लूमबर्ग द्वारा सर्वे किए गए 34 में से 23 अर्थशास्त्रियों का बहुमत अभी भी यही उम्मीद कर रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक इस हफ्ते अपनी दरें स्थिर रखेगा.

वहीं कुछ बैंकों ने हाल ही में अपने पूर्वानुमान बदल दिए हैं. भारतीय स्टेट बैंक लिमिटेड के सौम्य कांति घोष और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड बैंकिंग ग्रुप के धीरज निम, अब एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए बुधवार को ब्याज दरों में चौथाई अंकों की ढील का अनुमान लगा रहे हैं.

आरबीआई ने फरवरी से अब तक रेपो रेट में 100 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती करके इसे 5.5 फीसदी कर दिया है, जिसमें जून में अप्रत्याशित रूप से बड़ी कटौती भी शामिल है. तब से महंगाई छह वर्षों से अधिक समय में सबसे निचले स्तर पर आ गई है, जबकि ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ दर लगा दी है और अतिरिक्त दंड की धमकी दी है, जिससे विकास की संभावना धूमिल हो गई है.

पिछले महीने, गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा था कि आगे और कटौती की गुंजाइश है, हालांकि ढील की सीमा अभी भी ऊंची बनी हुई है. केंद्रीय बैंक से यह भी उम्मीद की जा रही है कि वह अपना “न्यूट्रल” पॉलिसी स्टांस बनाए रखेगा, जिससे वैश्विक अनिश्चितता के बीच दर-निर्धारकों को कुछ लचीलापन मिलेगा.

एसबीआई के घोष ने कहा कि अभी दरों में कटौती रोकने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि महंगाई इस वित्तीय वर्ष में आरबीआई के 4 फीसदी के लक्ष्य से नीचे और अगले वर्ष के लेवल के आसपास बनी रहेगी. उन्होंने कहा कि अभी एकमुश्त कटौती से त्योहारी सीजन में खर्च बढ़ाने और लोन वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.

हालांकि, घोष ने कहा कि केंद्रीय बैंक को रेपो दर के 5.25 फीसदी तक गिरने के बाद रुक जाना चाहिए. फरवरी 2020 में महामारी से ठीक पहले रेपो दर 5.15 फीसदी थी, जो उस समय तक की सबसे कम दर थी. उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान, आरबीआई ने प्रमुख दर को और घटाकर 4 फीसदी कर दिया, लेकिन सामान्य समय के लिए 5.15% “नींव दर” बनी रहनी चाहिए.

महंगाई और ग्रोथ

भारत की महंगााई जून में घटकर 2.1 फीसदी रह गई, जो लगातार पांच महीनों से आरबीआई के लक्ष्य से कम है. अच्छे मानसून और बुवाई में उत्साहजनक प्रगति के साथ, अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष में कीमतों में बढ़ोतरी आरबीआई के 3.7 फीसदी के अनुमान से कम रहेगी. दूसरी ओर, भारत पर ट्रंप के टैरिफ – जो वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे एशियाई प्रतिद्वंद्वियों से भी ज़्यादा हैं – विकास दर में 30 आधार अंकों तक की कमी ला सकते हैं. विश्लेषक भविष्य की नीतिगत दिशा का आकलन करने के लिए ग्रोथ और महंगाई पर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव के आरबीआई के आकलन पर बारीकी से नजर रखेंगे.

गोल्डमैन सैक्स ग्रुप के अर्थशास्त्री शांतनु सेनगुप्ता ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि आरबीआई संभवतः अपने “महंगाई और ग्रोथ के पूर्वानुमानों को कम करेगा और मॉनेटरी पॉलिसी ट्रांसमिशन में सहायता के लिए नरम रुख वाला मार्गदर्शन प्रदान करेगा. उन्होंने वित्त वर्ष के लिए महंगाई दर 3 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है.

लिक्विडिटी को लेकर उपाय

बॉन्ड व्यापारी केंद्रीय बैंक से इस बारे में अधिक स्पष्टता की अपेक्षा करेंगे कि हाल ही में नकदी निकासी की कार्रवाई के बाद, वह किस स्तर की सरप्लस लिक्विडिटी को ठीक मानता है. वे यह भी अपेक्षा करते हैं कि आरबीआई एक अपडेटिड लिक्विडिटी मैनेज्मेंट फ्रेमवर्क जारी करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसके दर संबंधी निर्णय व्यापक अर्थव्यवस्था में प्रभावी रूप से लागू हों.

जून में सीआरआर में कटौती के बाद आरबीआई द्वारा शॉर्ट टर्म कैश निकालने के निर्णय ने व्यापारियों को भ्रमित कर दिया. जैसे ही रातोंरात दरें नीतिगत दर से ऊपर पहुंच गईं, केंद्रीय बैंक को शॉर्ट टर्म लिक्विडिटी डालने के लिए मजबूर होना पड़ा. वर्तमान में, बैंकिंग सिस्टम में अतिरिक्त लिक्विडिटी3.3 ट्रिलियन रुपये है. सितंबर से शुरू होने वाले चरणों में सीआरआर में कटौती के प्रभावी होने के साथ, 2.5 ट्रिलियन रुपए और जुड़ने की उम्मीद है.

बॉन्ड और रुपया

बैंक ऑफ इंडिया इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स प्राइवेट लिमिटेड के अनुसार, ब्याज दरों में बदलाव से संकेत मिलता है कि आरबीआई अगस्त में दरें स्थिर रखेगा, और अक्टूबर में इसमें चौथाई अंकों की कटौती की संभावना बहुत कम है. कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी आलोक सिंह ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि अगर महंगाई में लगातार नरमी आती है—खासकर कोर महंगाई तो यील्ड में नरमी आ सकती है, खासकर मध्यम और लंबी अवधि के क्षेत्रों में. उन्होंने आगे कहा कि इसके विपरीत, कोई भी आक्रामक अप्रत्याशित या बाहरी झटके यील्ड को बढ़ा सकते हैं.

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में ढील देने और तरलता कम करने के बाद, पिछले दो महीनों में भारत के 10-वर्षीय बेंचमार्क बॉन्ड में लगभग 10 आधार अंकों की वृद्धि हुई है. रुपए पर केंद्रीय बैंक की टिप्पणी पर भी नजर रहेगी, जो फरवरी में अपने रिकॉर्ड निचले लेवल के आसपास मंडरा रहा है. ब्याज दरों में कटौती लोकल असेट्स को कम आकर्षक बनाकर करेंसी को और कमजोरर कर सकती है.