मतुआ-राजवंशी समुदाय पर बंगाल में फिर गरमाई सियासत, ममता के आरोप पर बीजेपी का पलटवार

मतुआ-राजवंशी समुदाय पर बंगाल में फिर गरमाई सियासत, ममता के आरोप पर बीजेपी का पलटवार
पीएम मोदी और ममता बनर्जी.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में नए सिरे से टकराव शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि मतुआ और राजवंशी समुदाय को बीजेपी शासित राज्यों में बांग्लादेशी कहकर निशाना बनाया जा रहा है. इसके जवाब में बीजेपी ने भी पलटवार किया है – कहा कि ममता बनर्जी झूठा डर दिखाकर वोट बैंक साधना चाहती हैं. सवाल ये है कि क्या ये समुदाय फिर बंगाल चुनाव में केंद्र बिंदु बनाने जा रहा है?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा उठाते हुए दावा किया है कि राज्य के दो प्रमुख दलित समुदायों, मतुआ और राजवंशी, के लोगों को देश के अन्य राज्यों में निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि इन समुदायों के लोगों को परेशान, गिरफ्तार और प्रताड़ित किया जा रहा है.

ममता के इस बयान को राजनीतिक हलकों में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक रणनीतिक दांव के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि ममता के आरोप के धार को कुंद करने के लिए पीएम ने एक बार फिर टीएमसी को घुसपैठियों के साथ जोड़ दिया.

मतुआ-राजवंशी कैसे हैं बंगाल की सियासत के लिए अहम?

मतुआ और राजवंशी समुदाय पश्चिम बंगाल में सामाजिक, राजनीतिक और चुनावी लिहाज से बेहद अहम माने जाते हैं. मतुआ समुदाय, जिसे नमशूद्र भी कहा जाता है, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए हिंदू शरणार्थी दलितों का सबसे बड़ा समूह है. अनुमान है कि राज्य में मतुआ वोटर की संख्या 1.75 से 2 करोड़ के बीच है, जो कुल अनुसूचित जाति (SC) आबादी का 1718% हिस्सा है. कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल में 11 लोकसभा क्षेत्रों में इस समुदाय का असर है. नॉर्थ चौबीस परगना, साउथ चौबीस परगना, नदिया, कूचबिहार, मालदा, हावड़ा और हुगली के कुछ हिस्से में इस समुदाय का व्यापक राजनीतिक असर है.

वहीं, राजवंशी समुदाय की आबादी लगभग 50 लाख के आस-पास है और इस समुदाय का असर उत्तरी बंगाल के जिलों कूचबिहार, अलीपुरद्वार ,जलपाईगुड़ी, दिनाजपुर, दार्जिलिंग और मालदा में हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में इन दोनों समुदायों ने बड़े पैमाने पर बीजेपी को समर्थन दिया था. मतुआ बहुल सीट बनगांव से शांतनु ठाकुर जीते जो खुद मतुआ समाज से हैं और केंद्रीय मंत्री भी हैं.

राजवंशी प्रभाव वाले कई इलाकों में भी बीजेपी को बढ़त मिली. हालांकि, 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता सरकार ने इन समुदायों को लुभाने के लिए योजनाएं और सुविधाएं शुरू कीं. मतुआ समुदाय के लिए जमीन के अधिकार, भाषा बोर्ड, छुट्टियां और छात्रवृत्तियों की घोषणा की गई. राजवंशी समाज के लिए न्यायालयों की स्थापना, संस्कृति से जुड़े फैसले, और विकास योजनाएं शुरू की गईं.

इसका असर यह हुआ कि इन समुदायों के एक हिस्से ने टीएमसी की ओर रुख किया. मतुआ समाज के कार्यक्रम में बीजेपी पहले भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती नजर आती है.

विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी-टीएमसी में घमासान

2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों समुदायों का वोट टीएमसी और बीजेपी के बीच बंटता हुआ दिखा. बीजेपी ने 2024 चुनाव से पहले नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू किया, जिससे मतुआ समुदाय में उम्मीद जगी कि उन्हें भारतीय नागरिकता का औपचारिक दर्जा मिलेगा. इससे बीजेपी को फिर से समर्थन मिला, लेकिन टीएमसी भी इनका वोट लेने में कामयाब रही.

ममता बनर्जी ने अब इन समुदायों पर कथित अत्याचार का मुद्दा उठाकर बीजेपी पर बंगालियों और शरणार्थियों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि बाहरी राज्यों में बंगाल के नागरिकों को टारगेट किया जा रहा है, जिससे पश्चिम बंगाल की अस्मिता और अधिकार खतरे में हैं.

ममता बनर्जी के बयान के पीछे 2026 विधानसभा चुनाव से पहले मतुआ और राजवंशी समुदायों को टीएमसी के साथ जोड़ने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. ये समुदाय न केवल जनसंख्या में भारी हैं, बल्कि कई सीटों पर जीत-हार तय करते हैं. ममता का संदेश साफ है,टीएमसी ही इन समुदायों की असली हितैषी है, जबकि बीजेपी उन्हें सिर्फ चुनावी औजार की तरह इस्तेमाल करती है. इस मुद्दे के आने वाले महीनों में और उभरने की संभावना है, क्योंकि बंगाल में राजनीतिक तापमान धीरे-धीरे फिर से चढ़ रहा है.