5वीं का छात्र 5 सब्जेक्ट में फेल, घरवाले जान न पाएं भाग गया मुंबई; पुलिस ने पकड़ा तो बोला- मेरा किडनैप हुआ

5वीं का छात्र 5 सब्जेक्ट में फेल, घरवाले जान न पाएं भाग गया मुंबई; पुलिस ने पकड़ा तो बोला- मेरा किडनैप हुआ


पुलिस ने छात्र को रेलवे स्टेशन से पकड़ा.

परीक्षा में पांच विषयों में फैल होने और घरवालों की डांट से बचने के लिए एक नाबालिग छात्र ने न केवल घर छोड़ दिया, बल्कि पुलिस और परिजनों को गुमराह करने के लिए अपहरण की झूठी कहानी भी गढ़ डाली. मामला जबलपुर जिले के रांझी थाना क्षेत्र का है, जहां 8वीं कक्षा में पढ़ने वाला 13 वर्षीय छात्र पांच विषयों में फेल हो गया था. परीक्षा परिणाम सामने आने के बाद उसे माता-पिता की नाराजगी और डांट का डर सताने लगा. इस डर से उसने घर छोड़ने का कदम उठाया और सीधे महाराष्ट्र के मुंबई जा पहुंचा.

पहले तो पुलिस को गुमराह किया

मुंबई रेलवे स्टेशन में घूमने के दौरान आरपीएफ बच्चे को अपने साथ पुलिस थाने ले गई, जहां नाबालिग ने घरवालों और पुलिस को भ्रमित करने के लिए कहानी बनाई कि कुछ लोग उसे जबरन दवा सुंघाकर ले गए थे. परिजनों ने जब बच्चे की गुमशुदगी की शिकायत की तो रांझी पुलिस ने धारा 137-2 अपहरण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. इस बीच मुंबई आरपीएफ ने रेलवे स्टेशन पर घूमते हुए बच्चे को पकड़ लिया और उसकी पहचान होने पर जबलपुर पुलिस को सूचना दी.

पुलिस पूछताछ में बताया सच

इसके बाद परिजनों और पुलिस की टीम मुंबई पहुंची और छात्र को जबलपुर लेकर आई. पुलिस पूछताछ में शुरुआत में बच्चा लगातार अपहरण की बात पर अड़ा रहा, लेकिन जब उससे प्यार और धैर्य से सवाल किए गए तो उसने सच्चाई सामने रखी. उसने कबूल किया कि असल में उसे किसी ने अपहरण नहीं किया, बल्कि वह खुद ही पढ़ाई में पांच विषय में फेल होने के कारण घर से भाग गया था और अपनी गलती छिपाने के लिए झूठी कहानी बनाई.

थाना प्रभारी उमेश गोल्हानी ने बताया कि यह पहला मामला नहीं है. बीते दिन भी एक 6 वर्षीय मासूम अपने पिता की डांट से नाराज होकर घर से भाग गया था. इस तरह की घटनाएं लगातार सामने आने से पुलिस और परिजन चिंतित हैं. स्कूली बच्चों में डांट-फटकार के डर से घर छोड़ने या गलत कदम उठाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है.

बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना जरूरी

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना बेहद जरूरी है. परिजनों को चाहिए कि असफलता पर बच्चों को कठोर दंड देने या डांटने के बजाय उन्हें समझाएं, प्रोत्साहित करें और आगे बढ़ने का हौसला दें. असफलता जीवन का अंत नहीं, बल्कि सीखने का एक अवसर है. ऐसे मामलों से यह साफ हो गया है कि केवल पढ़ाई का दबाव नहीं, बल्कि परिवार का व्यवहार भी बच्चों के निर्णयों को गहराई से प्रभावित करता है.

जबलपुर की यह घटना सभी माता-पिता और अभिभावकों के लिए सबक है. बच्चों को भावनात्मक सहारा और धैर्यपूर्ण मार्गदर्शन देना ही ऐसे मामलों को रोक सकता है. पुलिस भी इस प्रवृत्ति पर चिंता जता रही है और समाज से अपील कर रही है कि बच्चों के साथ संवाद और विश्वास का रिश्ता मजबूत करें, ताकि वे तनाव और असफलता में गलत रास्ता न चुनें.