मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के एक छोटे से गांव में एक ऐसा किसान है, जिसकी कहानी ‘मदर इंडिया’ फिल्म की याद दिलाती है. 90 वर्षीय किसान अमर सिंह के पास तीन एकड़ जमीन है. आज भी वह अपने खेतों में खुद हल चलाते हैं. किसान अमर सिंह की मेहनत और लगन देखकर ऐसा लगता है जैसे वह किसी फिल्म का हिस्सा हों. उनके पास न तो ट्रैक्टर है और न ही कोई आधुनिक कृषि उपकरण, लेकिन उनके हौंसले और मेहनत में कोई कमी नहीं है.
हर सुबह अमर सिंह अपने खेतों में जाते हैं और परंपरागत तरीके से खेती करते हैं. बुजुर्ग किसान अमर सिंह ने ट्रैक्टर, बैलगाड़ी नहीं होने के कारण देसी जुगाड़ लगाकर साइकिल के पहिए से हल बनाया है. बैल से जोतने वाले हल, जिससे वह स्वयं ही हकाई करते हैं.
गांव के किसान भी अमर सिंह से प्रेरित
सीहोर के तज गांव के अमर सिंह की कहानी, ‘मदर इंडिया’ की भावना को जीवित रखती है और हमें यह याद दिलाती है कि असली किसान वही है, जो अपनी जमीन से प्रेम करता है. गांव के अन्य किसान भी उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण से प्रेरित हैं. 90 साल के अमर सिंह बताते हैं कि मैं हमेशा से अपनी जमीन पर काम करने का शौक रखता था. यह मेरे लिए केवल एक काम नहीं, बल्कि मेरा जीवन है.
बाहें कांपती हैं, पैरों में ताकत नहीं बची
वह कहते हैं कि गरीबी के चलते उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है. खेती बमुश्किल गुजर-बसर से चल रही है. अमर सिंह ने बताया कि मेरी बाहें कांपती हैं, पैरों में ताकत नहीं बची और गर्दन भी जवाब देने लगती है, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं है. किसान की यह हालत कृषि व्यवस्था की विफलताओं की गवाही देती है. उनका बेटा बीमार है और काम करने में असमर्थ है, पत्नी से बनती नहीं, बहू ही कभी-कभी मदद कर देती है.
10 वर्षों से सोयाबीन की खेती में हो रहा घाटा
अमर सिंह और उनका परिवार टूटी हुई झोपड़ी में जीवन गुजार रहा है. खेती से बमुश्किल जीवन-यापन हो पा रहा है. बुजुर्ग किसान अमर सिंह का कहना है कि बीते 10 वर्षों से सोयाबीन की खेती लगातार प्राकृतिक आपदाओं और खराब बीजों के कारण खराब होती रही है, लेकिन उन्हें अब तक एक भी रुपया सरकारी मुआवजे या फसल बीमा के रूप में नहीं मिला.

