महिला के सीजेरियन की खींची थी फोटो, हाई कोर्ट का डॉक्टर और स्टाफ को राहत देने से क्यों इनकार

केरल हाई कोर्ट ने डॉक्टर और स्टाफ को राहत देने से इनकार कर दिया। इनके ऊपर महिला की डिलीवरी के सीजेरियन ऑपरेशन के दौरान फोटो खींचने और वीडियो बनाने का आरोप है। इन लोगों ने फोटो और वीडियो बनाने के बाद इसे वॉट्सऐप पर शेयर भी किया था। जस्टिस ए बदरुद्दीन ने मामले में सभी रिकॉर्ड और गवाहों के बयान पर गौर फरमाने के बाद यह फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि प्रथमदृष्टया जो सबूत मिले हैं, वह आरोपियों के खिलाफ हैं। ऐसे में इस मामले में राहत नहीं दी जा सकती है। मामले में डॉक्टर और हॉस्पिटल कर्मचारी ने याचिका दायर करके राहत देने की मांग उठाई थी।

कोर्ट ने कहा कि सबूतों से पता चलता है कि प्रथम आरोपी ने 18 जुलाई 2014 को 11 बजकर 13 मिनट से 11 बजकर 16 मिनट के बीच सीजेरियन ऑपरेशन का वीडियो बनाया था। इसके अलावा दूसरे आरोपी ने भी सीजेरियन प्रॉसेस की 19 तस्वीरें ली थीं। इसके बाद उसने इन तस्वीरों को वॉट्सऐप किया था। जांच के दौरान वॉट्सऐप पर भेजे गए फोटो और वीडियो को भी बतौर सबूत जुटाए गए थे। याचिका पर कोर्ट ने कहा कि सबकुछ देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि मामला खत्म करने के बजाए इसका ट्रायल होना चाहिए।

डॉक्टर और हॉस्पिटल स्टाफ ने अपनी याचिका में अपने खिलाफ शुरू की गई इस जांच को खत्म करने की मांग की थी। दोनों याचिकाकर्ता सरकारी पाव्यानूर के सरकारी तालुका अस्पताल में काम करते हैं। यहां पर महिला ने सीजेरियन ऑपरेशन के दौरान तीन बच्चों को जन्म दिया। आरोप है कि इस दौरान एक याचिकाकर्ता ने सर्जरी का वीडियो बनाया। जबकि दूसरे ने 19 तस्वीरें खींची थीं, जिन्हें वॉट्सऐप के जरिए शेयर किया गया। जांच के दौरान पुलिस ने दोनों याचिकाकर्ताओं के मोबाइल से इन तस्वीरों और वीडियो को रिकवर भी किया था। हाई कोर्ट के सामने दोनों याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि प्रॉसीक्यूशन का रिकॉर्ड उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं करते। उनका कहना था कि सिर्फ इस आधार पर उनकी पहचान नहीं हो रही है।

Related Articles

Latest Articles