साल 2025 की पहली छमाही देश के टेक सेक्टर के लिए भारी साबित हो रही है. कंपनियों में छंटनी का दौर चल पड़ा है और सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) ने एक झटके में 12,000 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा कर दी.
TCS का यह फैसला महज संख्या का खेल नहीं है, बल्कि यह एक साफ और कठोर संदेश भी है कि अब काम करने का तरीका पूरी तरह बदल चुका है और जो इस बदलाव के साथ कदम से कदम नहीं मिला पाएंगे, उन्हें पीछे छूटने के लिए तैयार रहना होगा.
कंपनी के CEO के. कृतिवासन ने इस बड़े फैसले पर सफाई देते हुए कहा, “हम अपने ऑपरेटिंग मॉडल और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को पूरी तरह बदल रहे हैं. खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी नई तकनीकों ने काम की प्रकृति को बदल दिया है.”
उन्होंने आगे कहा कि कंपनी ने अपने कर्मचारियों के पुनर्नियोजन (रीडिप्लॉयमेंट) में काफी निवेश किया है, लेकिन कुछ ऐसे रोल्स हैं, जहां दोबारा तैनाती अब संभव नहीं रही. इसलिए हमें यह फैसला लेना पड़ा, जो आसान तो नहीं था, लेकिन भविष्य के लिए ज़रूरी है.
खतरे में हैं मिड और सीनियर लेवल की नौकरियां
इस बार की छंटनी पिछली मंदी या COVID जैसे दौर से बिल्कुल अलग है. पहले जहां फ्रेशर्स, इंटर्न्स या फ्रंटलाइन सेल्स कर्मचारी चपेट में आते थे, अब आरी चल रही है अनुभवी मिड और सीनियर लेवल की जॉब्स पर. टेक एक्सपर्ट्स मानते हैं कि AI अब केवल बैकएंड टूल नहीं, बल्कि एक कॉरपोरेट रणनीति बन चुका है जो कंपनी की पूरी कार्यप्रणाली को दोबारा गढ़ रहा है.
सिर्फ TCS ही नहीं, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल (Alphabet), मेटा (Facebook) और अमेज़न जैसी कंपनियां भी लगातार कर्मचारियों की संख्या घटा रही हैं. Layoffs.fyi वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी से जुलाई 2025 के बीच अब तक 169 टेक कंपनियों ने करीब 80,000 कर्मचारियों को निकाला है और यह आंकड़ा TCS को शामिल किए बिना है.
AI से प्रभावित होने वाली बड़ी कंपनियों का हाल
कंपनी | AI से जुड़े Layoffs | CEO का बयान |
TCS | 12,000 (प्रोजेक्टेड) | AI स्किल्स के लिए रीडिप्लॉयमेंट जरूरी, आसान निर्णय नहीं. |
Microsoft | 15,000 | Enigma of Success |
Meta | 3,600 | Year of Efficiency |
Alphabet | 10,000 | पिछले ग्रोथ अनुमान के आधार पर ओवरहायरिंग हुई. |
X (Twitter) | 80% कर्मचारी | वर्क कल्चर को एक्सट्रीमली हार्डकोर बनाना था. |
AI ले रहा है इंसानों की जगह
TCS ने भले ही आधिकारिक तौर पर AI को छंटनी की वजह न माना हो, लेकिन कंपनी ने यह ज़रूर स्वीकार किया है कि अब काम करने का तरीका बदल गया है. AI अब कोडिंग से लेकर HR डॉक्युमेंट्स और ईमेल रिस्पॉन्स तक के काम कर रहा है. यानी जो काम पहले 10 लोग करते थे, अब वो एक सॉफ्टवेयर मॉडल चंद सेकंड में कर सकता है.
माइक्रोसॉफ्ट का डेटा बताता है कि उनकी कंपनी में अब 30% कोड AI जनरेटेड है. इसी तरह, मेटा के CEO मार्क जुकरबर्ग ने इसे ‘ईयर ऑफ एफिशिएंसी’ करार दिया. गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने स्वीकार किया कि कंपनी ने पिछले कुछ वर्षों में जरूरत से ज्यादा हायरिंग की थी. वहीं एलन मस्क ने X (Twitter) से 80% कर्मचारियों को हटाकर साफ कर दिया कि अब टेक्नोलॉजी का मतलब है कम स्टाफ, ज्यादा आउटपुट.
- माइक्रोसाॅफ्ट में नौकरियों पर संकट
अब तक के सबसे बड़े लेऑफ कब-कब हुए?
वक़्त का दौर | हर साल गईं कितनी नौकरियां? | क्यों हुआ ऐसा? |
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डॉट कॉम का ज़माना (2000- 02) | करीब 8 लाख लोग बेरोज़गार हुए | इंटरनेट कंपनियों में बिना सोचे-समझे भारी निवेश, फिर फुस्स हो गया बुलबुला |
आर्थिक मंदी (2008-09) | करीब 1.3 लाख लोगों की नौकरी गई | दुनिया भर में मांग घट गई, कारोबार थम गया |
कोरोना काल (2020- 22) | करीब 1.67 लाख लोगों की छंटनी हुई | महामारी के बाद जब दुनिया दोबारा खुली, तब कंपनियों ने स्टाफ घटाया |
AI और ऑटोमेशन का दौर (2022- 25) | अब तक 5.41 लाख से ज़्यादा छंटनी | आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन ने नौकरियों की ज़रूरत ही कम कर दी |
टेक कंपनियों की मुश्किलें सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं
AI एक बड़ा कारण है, लेकिन यह अकेला नहीं. आर्थिक मोर्चे पर भी बड़ी कंपनियों पर दबाव बना है. अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ चुकी हैं, निवेशकों की प्राथमिकता ‘हाइपर ग्रोथ’ से हटकर ‘सस्टेनेबल ग्रोथ’ पर आ गई है. ऐसे में कंपनियां कॉस्ट कटिंग और ऑटोमेशन की राह पर चल पड़ी हैं.
महामारी के बाद डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की वजह से जो बूम आया, उसने कंपनियों को जरूरत से ज्यादा लोगों को हायर करने पर मजबूर किया. लेकिन 2023 से मांग धीमी हुई, और अब वह ‘ओवरहायरिंग’ बोझ बन चुकी है.
ज्यादा कमाने वाले इंजीनियर ज्यादा निशाने पर
Bain & Co. की एक रिपोर्ट कहती है कि अब AI से सबसे ज्यादा खतरा उन मिड-लेवल टेक कर्मचारियों को है जो सालाना $200,000 (करीब 1.6 करोड़ रुपये) से ज्यादा कमाते हैं. क्योंकि उनके काम दोहराव वाले और डेटा-आधारित होते हैं, जो AI बड़ी आसानी से कर सकता है. अब कॉल सेंटर, HR सपोर्ट, ग्राहक ईमेल से लेकर क्लाउड ऑप्टिमाइजेशन तक, हर जगह AI को तैनात किया जा रहा है.
जो रेवेन्यू नहीं ला रहे, उनके लिए अब सिस्टम में जगह नहीं
कंपनियां अब ‘बेंच पॉलिसी’ जैसी रणनीतियों का सहारा ले रही हैं. टीसीएस की नई नीति के तहत कोई भी कर्मचारी एक साल में कम से कम 225 बिलेबल डेज पूरा करे, यानी कम से कम इतने दिन किसी प्रोजेक्ट पर काम करे जिससे रेवेन्यू आए. बेंच पीरियड को भी घटाकर 35 दिन कर दिया गया है. इससे इशारा साफ है, जो रेवेन्यू नहीं ला रहे, उनके लिए अब सिस्टम में जगह नहीं है.
साथ ही, कंपनियां अब हाई स्किल AI टैलेंट के पीछे करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट बताती है कि टॉप AI रिसर्चर को अब NBA खिलाड़ियों जैसी सैलरी दी जा रही है, $100 मिलियन तक के पैकेज पर ऑफर हो रहे हैं.
नई स्किल्स ही बचाएगी नौकरी
McKinsey का कहना है कि जेनरेटिव AI हर साल दुनिया की अर्थव्यवस्था में करीब 4 ट्रिलियन डॉलर तक का योगदान कर सकता है. लेकिन इसके साथ एक बड़ी चिंता भी है जो लोग पुरानी नौकरी में ही टिके रह गए हैं और नए काम के लिए जरूरी स्किल नहीं सीख रहे, वो धीरे-धीरे पीछे छूट सकते हैं.
जानकारों की राय में, आने वाले वक्त में वही लोग आगे रहेंगे जो समय के साथ अपने हुनर को अपडेट करते रहेंगे. काम की दुनिया बदल रही है. मशीनें बहुत कुछ कर रही हैं लेकिन इंसान की सोचने, समझने और कुछ नया गढ़ने की ताकत AI से बहुत आगे है और यही काबिलियत आगे चलकर सबसे ज्यादा काम आने वाली है.