कालाष्टमी व्रत और पूजा विधि
कालाष्टमी पर प्रात:काल स्नान करके शुद्ध मन (Kalashtami 2025) से पूजा स्थान पर आसन ग्रहण करें। सबसे पहले गंगाजल से शुद्धिकरण करें और भगवान भैरव की प्रतिमा या चित्र को पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापित करें।
फिर फल-फूल, धूप-दीप, चंदन, रोली, काला तिल, उड़द की दाल, सरसों का तेल और मिष्ठान अर्पित करें। पूजा के दौरान भगवान भैरव का मंत्र “ॐ कालभैरवाय नमः” का जाप करते रहें। साथ ही उनकी कथा और आरती का पाठ करें। दीप जलाने के लिए सरसों का तेल सबसे शुभ माना जाता है।
कालाष्टमी मंत्र जाप
इस व्रत में रुद्राक्ष की माला से मंत्रों का जाप करने की परंपरा है। आप अपनी श्रद्धा के अनुसार इनमें से किसी भी मंत्र का जप कर सकते हैं—
- ॐ भैरवाय नमः
- ॐ कालभैरवाय नमः
- ॐ ह्रीं बटुक भैरवाय नमः
- ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्
- ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं
कालाष्टमी के विशेष उपाय
- व्रत के दिन भगवान भैरव को उड़द के पकौड़े या गुलगुले का भोग लगाएं।
- भैरव बाबा की सवारी माने जाने वाले काले कुत्ते को दूध, रोटी या बिस्कुट खिलाएं।
- कालाष्टमी पर कालभैरवाष्टक स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल मिलता है।
- पूजा के बाद लगातार 40 दिनों तक भैरव मंत्र का जाप करने से उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
भगवान भैरव की आराधना का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान भैरव महादेव (Kalashtami 2025) के रुद्रावतार हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को शत्रुओं का भय नहीं रहता और जीवन में आत्मबल, साहस और समृद्धि आती है। कालाष्टमी व्रत को विशेष रूप से संकटों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का कारक माना गया है।
नोट: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और प्रचलित परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य सामान्य जानकारी प्रदान करना है।