सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो दशक पुराने एक मामले में दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर नीरज कुमार के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया है. बुधवार (10 सितंबर ) को इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जांच करने वालों की भी जांच होनी चाहिए. यह मामला 2001 की एक घटना से संबंधित है, जब नीरज कुमार CBI में संयुक्त निदेशक के पद पर तैनात थे.
नीरज कुमार पर एक मामले में दस्तावेजों के साथ जालसाजी का आरोप था. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और एसीपी रैंक से नीचे के किसी ऑफिसर से करवाने का आदेश दिया है. साथ ही कोर्ट ने तीन महीने के अंदर जांच पूरी करने का निर्देश दिय है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान न्या के उस मूल सिद्धांत को भी रेखांकित किया जो कहता है कि न्याय न केव होना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए.
‘कभी-कभी जांच करने वालों की भी जांच की जाए’
कोर्ट ने कहा ‘यह कहना अतिश्योक्ति होगी कि यह अपराध साल 2000 में हुआ था और आज तक इसकी जांच नहीं होने दी गई. अगर ऐसे अपराध की जांच नहीं की जाती, खासकर जब CBI में प्रतिनियुक्ति पर तैनात अधिकारियों की इसमें संलिप्तता हो तो यह न्याय के साथ खिलवाड़ होगा. कानून में यह अनिवार्य है कि न्याय न केवल किया जाए, बल्कि होते हुए भी देखा जाए. अब समय आ गया है कि व्यवस्था में आम जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए कभी-कभी जांच करने वालों की भी जांच की जाए’.
दस्तावेजों में गड़बड़ी करने और धमकी देने का आरोप
यह मामला 2001 में हुई एक घटना से जुड़ा है. उस दौरान नीरज कुमार CBI में संयुक्त निदेशक के पद पर थे. नीरज कुमार और एक अन्य अधिकारी पर एक मामले के दस्तावेजों में गड़बड़ी करने के साथ ही धमकी देने का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों अधिकारियों को भी इस मामले की जांच में हिस्सा लेने का अधिकार होगा, ताकि वो ये साबित कर सकें कि उन्होंने कोई जुर्म नहीं किया है.
स्पेशल सेल करेगी जांच
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने 13 मार्च 2019 को नीरज कुमार और तत्कालीन CBI अधिकारी विनोद कुमार पांडे के खिलाफ FIR दर्ज करने के अपनी सिंगल बेंच के 2006 में दिए गए आदेश को बरकरार रखा था और इसके खिलाफ दायर अपीलों को खारिज कर दिया था. हाई कोर्ट के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट के उसी आदेश को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच स्पेशल सेल और एसीपी रेंक से नीचे किसी ऑफिसर से करवाने के आदेश दिए. जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने कहा कि यह सही समय है कि व्यवस्था में आम जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए कभी कभी जांच करने वालों की भी जांच होनी चाहिए.