चार साल पहले तालिबान का काबुल पर कब्जे होने के बाद पाकिस्तान में खुशी की लहर थी और उसके कई नेताओं ने तालिबान के साथ भाई वाले संबंध बनाने का दावा किया था. लेकिन पछिले कुछ सालों में तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों में दूरी पैदा हुई हैं और अब पाकिस्तान तालिबान को मान्यता देने से डर रहा. पाकिस्तान के अधिकारियों ने कहा है कि उसे अफगान तालिबान सरकार को मान्यता देने की कोई जल्दी नहीं है और कोई भी फैसला देश के हित को ध्यान में रखते हुए लिया जाएगा.
रूस की ओर से तालिबान के शासन को आधिकारिक रूप से मान्यता देने के बाद सबकी निगाहें पाकिस्तान पर थी, कि पाकिस्तान भी ऐसा कदम जल्द उठा सकता है. कुछ जानकारों का मानना है कि मॉस्को का फ़ैसला अन्य क्षेत्रीय देशों द्वारा तालिबान को अपनाने के लिए नजीर साबित होगा.
हालांकि, पाकिस्तान के अधिकारियों ने द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार को बताया कि रूस का फैसला कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि मॉस्को ने कुछ समय पहले संकेत दिया था कि वे इस तथ्य को स्वीकार कर लेंगे कि तालिबान अब सत्ता में हैं और उनके शासन को स्वीकार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
पाकिस्तान क्यों नहीं दे रहा मान्यता?
पाकिस्तान ने तालिबान के सत्ता में आने के बाद तालिबान शासन पर आरोप लगाया है कि उसने पाकिस्तान के आतंकी संगठन TTP को अपनी जमीन पर पनाह दी है. हालांकि तालिबान ने इन बातों से इंकार किया है. वहीं पाकिस्तान सरकार पाकिस्तान में रह रहे अफगान समुदाय के शरार्णथियों को वापस भेज रहा है, जिसको कई पक्ष अमानवीय मान रहे हैं. इन घटनाओं के बाद से तालिबान और पाकिस्तान के रिश्ते हाल में बिगड़ गए हैं.
इसके अलावा पाकिस्तान को कई अंतरराष्ट्रीय समुदाय जैसे IMF के साथ अमेरिका जैसे देशों से मदद दी जाती है. ऐसे में तालिबान को मान्यता देना उसके अंतरराष्ट्रीय मंच पर नुकसान पहुंचा सकता है.
रूस के कदम का पड़ेगा असर
रूस का यह फैसला इस तथ्य से भी लिया गया है कि तालिबान सरकार के साथ जुड़ाव से आतंकवादी खतरे से निपटने और उसके भू-रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी. जब एक पाकिस्तानी अधिकारी से पूछा गया कि क्या इस्लामाबाद भी तालिबान शासन को मान्यता देगा, तो उन्होंने कहा, “हम निश्चित रूप से अपने हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेंगे. मैं आपको बता सकता हूं कि इसमें कोई जल्दबाजी नहीं है.”
हालांकि, एक सूत्र ने इस संभावना से इनकार नहीं किया कि अगर अन्य क्षेत्रीय देश रूस के नक्शेकदम पर चलते हैं तो पाकिस्तान अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपना सकता है.