कंधीलाल दो वर्ष पूर्व दिवंगत हो चुके हैं
याचिकाकर्ता बीटी तिराहा, जबलपुर निवासी दिवंगत कंधीलाल के उत्तराधिकारियों की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं के परिवार के सदस्य कंधीलाल दो वर्ष पूर्व दिवंगत हो चुके हैं।
मृतात्मा ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया
तहसीलदार, गढ़ा ने जो आदेश पारित किया, उससे प्रतीत होता है कि जैसे कंधीलाल जिंदा है और उनके समक्ष उपस्थित हुआ। यही नहीं उसने कब्जा आदेश पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। जिसके बाद तहसीलदार ने उसकी जमीन शासन के कब्जे में लिए जाने का आदेश पारित कर दिया।
खेत 1989 में सीलिंग के दायरे में आ गई थी
कंधीलाल जिस जमीन पर घर बनाकर रहते थे और खेती भी करते थे, वह 1989 में सीलिंग के दायरे में आ गई थी। राज्य शासन ने 15 जुलाई, 1989 को जमीन का कब्जा कंधीलाल से लेकर अतिशेष घोषित कर दिया था। कंधीलाल के स्वजनों ने जब जमीन की पड़ताल की तो पाया कि तहसीलदार ने जिस वर्ष कंधीलाल से कब्जा लिया, उससे दो वर्ष पूर्व फरवरी, 1987 में ही उसकी मौत हो चुकी थी।
जमीन सरकार के हिस्से चली गई, पता नहीं चला
कंधीलाल के स्वजनों को लंबे समय तक यह पता ही नहीं था कि उनकी जमीन सरकार के हिस्से चली गई है। जैसे ही जानकारी मिली, वे आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट चले आए थे। इसी के साथ तहसीलदार के आदेश की प्रति निकलवाई गई। जिसका अवलोकन करने पर साफ हुआ कि तहसीलदार ने न सिर्फ मृतक कंधीलाल को जीवित बताया बल्कि उसकी मृत्यु के दो वर्ष बाद उससे जमीन पर कब्जा भी ले लिया।