केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक वकील को कड़ी फटकार लगाई और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। यह जुर्माना इसलिए लगाया गया क्योंकि वकील ने न्यायाधीश, विपक्षी पक्षों, और उनके वकील के खिलाफ निराधार आरोप लगाते हुए अदालत की अवमानना की याचिका दायर की थी। यह मामला अधिवक्ता पी.एम. कुरियन द्वारा दायर याचिका पर आधारित है, जिसमें उन्होंने कोट्टायम के अतिरिक्त मुंसिफ न्यायालय के न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की थी। कुरियन ने न केवल न्यायिक अधिकारी बल्कि मुकदमे में विरोधी पक्षों और उनके वकीलों के खिलाफ भी अवमानना की कार्रवाई की मांग की थी। उनका आरोप था कि न्यायिक अधिकारी ने विपक्षी दलों और उनके वकीलों के साथ मिलीभगत की है।
कुरियन ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि मुंसिफ न्यायालय के दो आदेश अदालत की अवमानना हैं। इनमें से एक आदेश में मामले को नए सिरे से विचार के लिए मुंसिफ न्यायालय को वापस भेज दिया गया था और दूसरे में विपक्षी पक्ष को अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी गई थी। कुरियन ने इन आदेशों को चुनौती दी और आरोप लगाया कि यह अदालत की अवमानना है।
केरल उच्च न्यायालय का कड़ा रूख
न्यायमूर्ति सी. जयचंद्रन ने याचिका को बेबुनियाद और निराधार बताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का उद्देश्य न्यायाधीश और विरोधी पक्ष को हतोत्साहित करना और डराना था। उन्होंने कहा, “याचिकाकर्ता कानूनी पेशे का एक जिम्मेदार सदस्य है और अदालत के समक्ष पक्षों को न्याय प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण हितधारक माना जाता है। याचिकाकर्ता ने केवल एक न्यायाधीश के खिलाफ, बल्कि वादी की ओर से उपस्थित अपने ही समकक्ष के खिलाफ भी अवमानना के निराधार और बेबुनियाद आरोप लगाते हुए की हद ही कर दी। यह कानूनी पेशे के सदस्यों के बीच भाईचारे और सौहार्द के बिल्कुल विपरीत है।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस तरह की कार्रवाई से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे एक माह के भीतर केरल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को चुकाने का आदेश दिया गया।