अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुई तनातनी के बाद से ही खरबपति बिजनेसमैन एलन मस्क उनके खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे थे, साथ में नए राजनीतिक दल के गठन की बात कर रहे थे. हालांकि मस्क ने अब ‘अमेरिकन पार्टी’ के नाम से नए राजनीतिक दल के गठन का ऐलान कर दिया है. उनके इस ऐलान के बाद अमेरिका में सियासत के बदलने के आसार बढ़ गए हैं क्योंकि यहां पर अमूमन दो दलों के बीच ही सियासी घमासान होता रहा है.
एलन मस्क अपने तेवर के लिए भी जाने जाते हैं. उनकी ओर से राजनीतिक पार्टी के ऐलान के साथ ही अब यह तय हो गया है कि मस्क राष्ट्रपति ट्रंप को खुली चुनौती देते रहेंगे. मस्क ने अपनी नई पार्टी के ऐलान के साथ ही कहा कि ये पार्टी लोगों को खोई हुई आजादी वापस दिलाएगी.
छोटी पार्टियां यानी थर्ड पार्टी
यूं तो अमेरिका बहुदलीय प्रणाली के तहत काम करता है, जिसमें 2 दलों का दबदबा शुरू से ही रहा है. यहां की सियासत में कभी रिपब्लिकन तो कभी डेमोक्रेटिक पार्टी हावी रही है और इन्हीं दोनों दलों के बीच सत्ता परिवर्तन होता रहा है. रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक के अलावा रिफॉर्म (Reform Party), लिबर्टेरियन पार्टी (Libertarian Party), सोशलिस्ट पार्टी (Socialist Party), नेचुरल लॉ पार्टी (Natural Law Party), कॉन्स्टिट्यूशन पार्टी (Constitution Party) और ग्रीन पार्टी (Green Party) सहित अन्य दल राष्ट्रपति चुनावों में भाग लेती रही हैं. इन्हें यहां पर थर्ड पार्टी कहा जाता है.
अमेरिका में छोटे दलों की नाकामी और अमेरिका की दो दलीय व्यवस्था के लचीलेपन के कई वजहें भी हैं. राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव जीतने के लिए, किसी भी दल को वोटर्स के व्यापक आधार और हितों को आकर्षित करना चाहिए. इन दोनों प्रमुख दलों की राजनीति ज्यादातर सेंट्रलिस्ट यानी मध्यमार्गी के आधार पर रही है. कई बार कई अहम प्रमुख मसलों पर दोनों दलों के बीच बहुत ही मामूली अंतर होता है, खासकर विदेशी मामलों को लेकर. कुछ मसलों पर रूढ़िवादी डेमोक्रेट तो उदारवादी डेमोक्रेट की तुलना में रूढ़िवादी रिपब्लिकन की तरह नीति अपनाते दिखते हैं.
छोटे दलों के लिए चुनाव लड़ना खर्चिला
चुनाव के दौरान डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों के नाम स्वचालित रूप से जनरल इलेक्शन बैलेट पर शामिल किया जाता है, जबकि छोटे दलों को बैलेट पर नाम डलवाने के लिए रजिस्टर्ड वोटर्स से एक पर्याप्त संख्या में हस्ताक्षर करवाने पड़ते हैं और यह बेहद खर्चिला होता है.
खासतौर से राष्ट्रपति चुनाव के दौरान यह प्रक्रिया जेब पर बहुत भारी पड़ती है. इसलिए ज्यादातर छोटे दल इससे दूर रहते हैं. 1970 के दशक से, राष्ट्रपति चुनाव अभियान (प्राइमरी और कॉकस, राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन और आम चुनाव) को टैक्स चेकऑफ सिस्टम के जरिए सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित किया गया है, जिसके तहत टैक्सपेयर्स यह तय कर सकते हैं कि उनके फेडरल टैक्स का एक हिस्सा (एक व्यक्ति के लिए 3 डॉलर और एक विवाहित जोड़े के लिए 6 डॉलर) राष्ट्रपति चुनाव अभियान निधि (Presidential election campaign fund) को आवंटित किया जाना चाहिए या नहीं.
फंड के लिए भी छोटे दलों को दिक्कत
डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को आम चुनाव के लिए पूर्ण संघीय वित्तीय मदद मिलती है, लेकिन एक छोटी पार्टी को इस फेडरल फंड का एक हिस्सा तभी मिलेगा जब उसके उम्मीदवार ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में 5 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए हों (पिछले राष्ट्रपति चुनाव में कम से कम 25 फीसदी नेशनल वोट प्राप्त करने वाले सभी दल समान निधि की हकदार हैं). राष्ट्रपति चुनाव लड़ने वाली एक नई पार्टी चुनाव के बाद फेडरल फंड की तभी हकदार होती है, यदि उसे नेशनल वोट का कम से कम 5 फीसदी वोट मिले हों.
अब तक डेमोक्रेटिक (1828 में स्थापना) और रिपब्लिकन के अलावा किसी अन्य दल को बड़ी कामयाबी नहीं मिली है. आम चुनाव के दौरान छोटे दलों को थोड़ी बहुत कामयाबी जरूर मिली है. हालांकि, 1850 के दशक में रिपब्लिकन पार्टी (1854 में स्थापना) के अहम पार्टी के दर्जे तक पहुंचने के बाद से, छोटी पार्टियों को सीमित चुनावी कामयाबी ही मिली है, ये दल इन दोनों दलों के अभियानों को प्रभावित करने या किसी पार्टी से अहम वोट छीनने तक ही सीमित रहे हैं, ताकि राष्ट्रपति चुनाव में संबंधित पार्टियों को जीत से रोका जा सके.
काम बिगाड़ते रहे हैं छोटे दल
जैसे कि 1912 के राष्ट्रपति चुनाव में पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने रिपब्लिकन राष्ट्रपति विलियम हॉवर्ड टाफ्ट को चुनौती दी, जिससे कि रिपब्लिकन के वोट बंट गए और डेमोक्रेट वुडरो विल्सन महज 42 फीसदी वोट के साथ राष्ट्रपति चुनाव जीतने में कामयाब हो गए. इसी तरह साल 2000 में ग्रीन पार्टी के उम्मीदवार राल्फ नादर ने 2.7 फीसदी वोट हासिल कर रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज डब्ल्यू बुश के पक्ष में चुनाव करा दिया. अगर नादर मैदान में नहीं होते तो डेमोक्रेट प्रत्याशी अल गोर के खाते में जीत जा सकती थी.
ऐसे में एलन मस्क अपनी नई अमेरिकन पार्टी के साथ राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाते हैं तो उनके लिए यह चुनौती आसान नहीं होगी. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में कभी रिपब्लिकन तो कभी डेमोक्रेट प्रत्याशी को ही जीत मिली है. आम चुनावों में भी इन्हीं दोनों दलों का कब्जा रहा है. ऐसे में मस्क को जगह बनाने के लिए आक्रामक रणनीति बनानी होगी.