काबुल में तबाही का ट्रेलर! बन जाएगा बिना पानी वाला दुनिया का पहला शहर

काबुल में तबाही का ट्रेलर! बन जाएगा बिना पानी वाला दुनिया का पहला शहर
काबुल में बढ़ रहा है पानी का संकट

कभी अफगानिस्तान की रूह कहा जाने वाला काबुल, आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है. हिंदूकुश की पहाड़ियों के बीच बसे इस ऐतिहासिक शहर की पहचान सिर्फ अफगानिस्तान की राजधानी के तौर पर नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र के रूप में भी रही है. लेकिन अब यही काबुल दुनिया का पहला ऐसा बड़ा शहर बनने की कगार पर है, जहां 2030 तक पानी पूरी तरह खत्म हो सकता है. नॉनप्रॉफ्टि मर्सी कॉप्स की रिपोर्ट में इसकी चेतावनी दी गई है.

एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, बीते एक दशक में काबुल के भूजल स्तर में 25 से 30 मीटर तक गिरावट दर्ज की गई है. हर साल जितना पानी जमीन से निकाला जा रहा है, उससे 4.4 करोड़ क्यूबिक मीटर ज्यादा निकासी हो रही है. यानी जलस्तर की प्राकृतिक भरपाई से कहीं ज्यादा तेज़ी से पानी का दोहन हो रहा है.

जल संकट के पीछे कौन-कौन से कारण?

सालों तक चले संघर्ष ने काबुल में आधुनिक जल प्रणाली में निवेश को रोक दिया. नतीजा ये कि जमीन का पानी तेजी से खत्म हो रहा है और जो बचा है वो भी जहरीला हो चुका है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक काबुल में आधे से ज्यादा बोरवेल सूख चुके हैं और करीब 80 फीसदी भूजल दूषित हो चुका है. अगर यही स्थिति रही तो 2030 तक यहां की जमीन के नीचे मौजूद जल स्रोत पूरी तरह खत्म हो जाएंगे.

1. जलवायु परिवर्तन की मार: जल संकट की सबसे बड़ी वजह है बदलता मौसम चक्र. बीते कुछ वर्षों से अफगानिस्तान में बर्फबारी घट रही है, बर्फ समय से पहले पिघल रही है और सूखे की घटनाएं बार-बार हो रही हैं. 2023 में सामान्य से 40-50% कम बारिश हुई, जिससे भूजल को रिचार्ज होने का मौका नहीं मिला.

2. प्रशासनिक विफलताएं: जल प्रबंधन, पाइपलाइन मरम्मत, और वर्षाजल संग्रहण जैसे बुनियादी कामों की लगातार अनदेखी की गई. सरकार की नाकामी ने जल संकट को और गहरा बना दिया है. 170 मिलियन डॉलर की लागत वाला पंजशीर नदी से पानी लाने वाला प्रोजेक्ट वर्षों से सिर्फ कागजों में अटका पड़ा है.

3. तेजी से बढ़ती आबादी: 2001 में काबुल की आबादी जहां 10 लाख थी, वहीं अब यह 60 लाख के पार पहुंच चुकी है. युद्ध, आंतरिक विस्थापन और अस्थिर शासन व्यवस्था के चलते लाखों लोग काबुल में बस गए. नतीजा ये कि सीमित जल संसाधनों पर भारी बोझ पड़ गया.

किसने बढ़ाई मुसीबत?

काबुल में 500 से अधिक बोतलबंद पानी और सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियां काम कर रही हैं, जो भूजल का अंधाधुंध दोहन कर रही हैं. सिर्फ अलोकोजे कंपनी ही हर साल 1 अरब लीटर पानी निकाल रही है. इसके अलावा, 400 हेक्टेयर में फैले ग्रीनहाउस सालाना करीब 4 अरब लीटर पानी की खपत कर रहे हैं.

अब अगर कुछ नहीं किया तो क्या होगा?

अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अफगान सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो हालात और बिगड़ेंगे. अनुमान है कि काबुल से लगभग 30 लाख लोग विस्थापित हो सकते हैं. ये संकट सिर्फ राजधानी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है. खासतौर पर उत्तरी, उत्तर-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी प्रांतों में सूखा तेज़ी से फैल रहा है. यहां फसलें बर्बाद हो रही हैं, और पशुधन मर रहे हैं. खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक, खेती और पशुपालन पर निर्भर लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी खतरे में है.

क्या है उम्मीद की किरण?

पंजशीर नदी से काबुल तक पानी लाने की योजना एक उम्मीद की किरण जरूर है. इसका डिज़ाइन 2024 के अंत तक तैयार हो चुका है और सरकार इसके लिए निवेशकों की तलाश में है. अगर इसे समय पर मंजूरी और फंडिंग मिल गई, तो करीब 20 लाख लोगों को साफ पानी मिल सकेगा.