कर्नाटक में जाति जनगणना पर रोक की मांग, हाईकोर्ट में हुई सुनवाई; सरकार से पूछे ये सवाल

कर्नाटक में जाति जनगणना पर रोक की मांग, हाईकोर्ट में हुई सुनवाई; सरकार से पूछे ये सवाल
कर्नाटक हाईकोर्ट.

कर्नाटक में असमंजस के बीच राज्य भर में जातियों का सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण शुरू हो गया है. इस बीच, बुधवार को सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर उच्च न्यायालय की खंडपीठ में सुनवाई हुई. सरकार और आयोग ने राज्य वोक्कालिगा संघ, अखित कर्नाटक ब्राह्मण महासभा, वीरशैव लिंगायत महासभा के सदस्यों सहित कई लोगों द्वारा उठाई गई आपत्तियों का जवाब देने की कोशिश की.

मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सीएम जोशी की खंडपीठ ने बुधवार लगभग दो घंटे तक सुनवाई की और सुनवाई कल (25 सितंबर) तक के लिए स्थगित कर दी.

सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कर्नाटक सरकार की ओर से दलीलें दीं. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 342 ए(3) पर सवाल नहीं उठाया है. याचिकाकर्ताओं ने पिछड़ा वर्ग अधिनियम की धारा 9 और 11 पर रोक लगाने की मांग नहीं की है. याचिकाकर्ताओं ने यह नहीं बताया है कि सर्वेक्षण में क्या गलत था? इसलिए, उन्होंने तर्क दिया कि सर्वेक्षण पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए.

उच्च न्यायालय ने सरकार से पूछे सवाल

याचिकाकर्ताओं ने यह नहीं कहा है कि सरकार को सर्वेक्षण कराने का अधिकार नहीं है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने सर्वेक्षण के तरीके पर सवाल उठाए हैं. आरोप है कि जातियों में धर्म को भी शामिल किया गया है. अदालत ने सरकार से इस आरोप पर सवाल किया कि जाति सूची प्रकाशित करने से पहले उचित वर्गीकरण नहीं किया गया.

उहोंने कहा कि आप आंकड़े इकट्ठा किए बिना खामियां नहीं निकाल सकते. जातिगत आंकड़े इकट्ठा किए बिना आप योजनाएं नहीं बना सकते. अगर सर्वेक्षण में कोई चूक है, तो उस पर सवाल उठाया जाना चाहिए, लेकिन वे सर्वेक्षण शुरू होने से पहले ही उस पर सवाल उठा रहे हैं. चूंकि याचिकाकर्ता ने यह नहीं बताया है कि सर्वेक्षण कैसे गलत है, इसलिए स्थगन आदेश जारी नहीं किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा किसर्वेक्षण पिछड़े लोगों की पहचान करने और उन्हें लाभ प्रदान करने के लिए किया जा रहा है. इसके लिए जानकारी इकट्ठा करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है. केंद्र सरकार को जातिगत सर्वेक्षण करने में पांच से छह साल लग सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि राज्यों को तब तक जातिगत सर्वेक्षण नहीं करना चाहिए.

एएसजी अरविंद कामथ ने रखा केंद्र का पक्ष

सरकार सर्वेक्षण के नाम पर जनगणना कर रही है. केंद्र सरकार जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना भी कराएगी. अगर सभी राज्य अलग-अलग सर्वेक्षण करेंगे तो समस्या होगी. केंद्र और राज्य के सर्वेक्षणों में कोई विरोधाभास नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार 2027 में खुद जातिगत जनगणना शुरू करेगी. राज्य के सर्वेक्षण में लोगों के लिए जवाब देना अनिवार्य नहीं है. उन्होंने पीठ से कहा, “ऐसे सर्वेक्षण कराने का क्या फायदा है.”

इंदिरा साहनी मामले में जाति सूची तैयार करने की अनुमति दी गई है. भले ही यह आरक्षण के लिए न हो, फिर भी लाभ प्रदान करने के लिए आंकड़ों की आवश्यकता हो सकती है. क्या आपकी माँग है कि सर्वेक्षण के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या 60 से घटाकर 5 कर दी जाए? क्या आप यह कह रहे हैं कि हर घर का सर्वेक्षण नहीं किया जाना चाहिए?

उन्होंने कहा किवे जाति का वर्गीकरण किए बिना ही सर्वेक्षण कर रहे हैं. बेंगलुरु में अमीरों के घर जाकर सर्वेक्षण करने की क्या जरूरत है? केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अरविंद कामथ ने स्पष्ट किया कि सरकार सर्वेक्षण के नाम पर जनगणना कर रही है. सरकार ने 1561 जातियों को कैसे परिभाषित किया? जाति वर्गीकरण के लिए क्या कदम उठाए गए?

अब कल होगी सुनवाई, लोगों की टिकी निगाहें

रवि वर्मा कुमार ने आयोग की ओर से दलील दी. उन्होंने कहा कि जनगणना और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण में अंतर है. सर्वेक्षण, जनगणना की तुलना में अधिक विस्तृत जानकारी एकत्र करता है. सर्वेक्षण में उत्तर स्वेच्छा से दिए जा सकते हैं. जनगणना के दौरान लोगों के लिए विवरण प्रदान करना अनिवार्य है.

सर्वेक्षण में एकत्रित आंकड़ों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. यह तर्क दिया गया है कि जनगणना के आंकड़ों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. अंततः, समय की कमी के कारण, उच्च न्यायालय ने सुनवाई कल तक के लिए स्थगित कर दी है. कल बहस पूरी होगी और उच्च न्यायालय तय करेगा कि सर्वेक्षण पर रोक लगाई जाए या नहीं.