प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस हफ्ते यूक्रेन की यात्रा पर जाने वाले हैं। इससे पहले, भारत ने रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, नई दिल्ली की ओर से कहा गया कि दोनों देशों के बीच हम संदेश भेजने में मदद कर सकते हैं। मालूम हो कि पीएम मोदी 23 अगस्त को यूक्रेन की यात्रा करने वाले हैं। खास बात यह है कि फरवरी 2022 में रूस के आक्रमण के बाद किसी सीनियर भारतीय नेता की यह पहली यात्रा है। साथ ही, साल 1991 में यूक्रेन के स्वतंत्र होने के बाद भी किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा होगी।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की के चीफ ऑफ स्टाफ एंड्री यरमैक ने भारत को लेकर बीते दिनों बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी यूक्रेन में शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, आधाकारिक सूत्रों का कहना है कि भारत ने दोनों युद्धरत देशों के बीच प्रत्यक्ष मध्यस्थ की भूमिका से इनकार कर दिया है। नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि भारतीय पक्ष दोनों के बीच संदेश जरूर भेज सकता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध में क्या है भारत का पक्ष
मालूम हो कि यूक्रेन में रूस के ऐक्शन की सार्वजनिक रूप से निंदा करने से भारत परहेज करता रहा है। नई दिल्ली ने यूएन में यूक्रेन से संबंधित ज्यादातर प्रस्तावों के खिलाफ मतदान किया या फिर उनमें भाग ही नहीं लिया। भारत का कहना रहा है कि रूस-यूक्रेन में बातचीत और कूटनीति ही आगे बढ़ना चाहिए। स्थायी समाधान खोजने के सभी प्रयासों का समर्थन किया जाएगा। युद्ध से कोई समाधान नहीं निकलने वाला है।
रूस और यूक्रेन के एक-दूसरे पर हमले जारी
इस बीच, खबर है कि यूक्रेन ने रूस के कुर्स्क क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पुल को नष्ट कर दिया है। साथ ही, पास में ही स्थित एक और पुल पर हमला किया है। यह हमला सीमा पार से की गई घुसपैठ के दो सप्ताह से भी कम समय में हुआ है। इस हमले से रूसी आपूर्ति मार्ग बाधित हो गया है। रूस के क्रेमलिन समर्थक सैन्य ‘ब्लॉगर्स’ ने यह स्वीकार भी किया है। इसे लेकर कहा कि ग्लुशकोवो शहर के पास सेइम नदी पर बने पहले पुल के नष्ट होने से यूक्रेन के आक्रमण को रोकने वाले रूसी बलों को आपूर्ति बाधित होगी। हालांकि, मॉस्को अभी भी क्षेत्र में छोटे पुलों का इस्तेमाल कर सकता है।