नाराज हाई कोर्ट ने कहा-यह तो आम पब्लिक से सीधे-सीधे लूट-खसोट है

बसों में दूरी के हिसाब से किराया का निर्धारण किया गया है। किराया निर्धारण करते वक्त राउंड फिगर के बजाय चिल्हर को जोड़ दिया है। यात्रा और टिकट लेने की जल्दबाजी का फायदा बस कंडक्टर के अलावा स्टाफ उठा रहा है। चिल्हर के बजाय सीधे राउंड फिगर में यात्रियों से किराया वसूल रहे हैं।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यात्रियों से राउंड फिगर के बहाने अतिरिक्त किराया वसूली पर नाराजगी जताई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने इस मामले को जनहित याचिका के रूप में स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की। कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि जल्द से जल्द बसों में किराए का पारदर्शी सिस्टम लागू किया जाए ताकि यात्रियों की जेब पर अनावश्यक भार न पड़े।

बसों में दूरी के हिसाब से किराया का निर्धारण किया गया है। किराया निर्धारण करते वक्त राउंड फिगर के बजाय चिल्हर को जोड़ दिया है। यात्रा और टिकट लेने की जल्दबाजी का फायदा बस कंडक्टर के अलावा स्टाफ उठा रहा है। चिल्हर के बजाय सीधे राउंड फिगर में यात्रियों से किराया वसूल रहे हैं। मसलन बिलासपुर से सरगांव का किराया 20.50 रुपये तय किया गया है। कंडक्टर या बस स्टाफ सीधे 21 रूपये वसूल रहा है। 50 पैसे का हिसाब नहीं दे रहा है। जाहिर है यात्रियों की जेबें कट रही है। एक यात्री से इसी तरह वसूली करते-करते पूरे दिन में हजारों रुपये ऐंठ ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने इसे स्वत: संज्ञान में लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है। चीफ जस्टिस सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में शुक्रवार को पीआइएल की सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस ने राउंड फिगर के बहाने वसूले जा रहे किराए को लेकर नाराजगी जताई व इसे जल्द दुरुस्त करने का निर्देश दिया है।

किराया सूची चस्पा और फ्री यात्रा के लिए बोर्ड लगाने का आदेश

पिछली सुनवाई में हाई कोर्ट ने सभी बस स्टैंड और बसों में किराया सूची चस्पा करने का निर्देश दिया था। आरटीओ ने इस आदेश के पालन में बसों में किराया सूची और फ्री यात्रा करने वाले यात्रियों की सूची भी चस्पा कर दी है। इन डिस्प्ले बोर्ड्स से यात्रियों को जानकारी मिल सकेगी कि किन्हें यात्रा में 100 प्रतिशत छूट मिलती है और किसे नहीं।

शासन की चूक पर कोर्ट की सख्ती, चार सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश

सुनवाई के दौरान राज्य शासन ने बताया कि, किराया निर्धारण का पत्र गलती से विधि एवं विधायी विभाग को भेज दिया गया था, जबकि इस पर निर्णय कैबिनेट मीटिंग में होना था। हाई कोर्ट ने शासन से कहा कि कैबिनेट की बैठक कर इस मुद्दे पर निर्णय लें और चार सप्ताह के भीतर इसे प्रदेशभर में लागू करें।

यह है मामला

कोरोना संक्रमण काल के दौरान मार्च 2020 से अब तक बसें डिपों में ही खड़ी रहीं। इसके चलते बसों की हालत खराब हो गई है। सभी बसें चलने लायक भी नहीं हैं। बिलासपुर शहर में दो दर्जन के करीब सिटी बसें ही चल रही हैं। मीडिया में प्रकाशित खबर को संज्ञान में लेते हुए पीआइएल के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है।

हाई कोर्ट की नाराजगी का दिखा असर

राउंड फिगर की आड़ में अधिक किराया वसूल करने के आरोप 349 बस आपरेटरों पर कार्रवाई करते हुए 4 लाख 47 हजार 800 रुपए का जुर्माना ठोंका गया है। किराया सूची चस्पा नहीं करने वाली तीन बसों पर 40 हजार रुपए जुर्माना किया गया है।

यात्रा में इनको मिलती है छूट

दिव्यांगजन, वरिष्ठ नागरिक, दृष्टिहीन व्यक्ति, बौद्धिक दिव्यांग, दोनों पैरों से असमर्थ व्यक्ति, 80 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले वरिष्ठ नागरिक और एचआइवी पीड़ित व्यक्ति को यात्री किराये में 100 प्रतिशत छूट दी जाती है। नक्सलवाद से प्रभावित व्यक्तियों को 50 प्रतिशत छूट दी जाती है।

हाई कोर्ट में मीडिएशन सेंटर की पहल से टूटते रिश्ते को मिला नया जीवन

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तलाक के लिए अदालत का रुख करने वाले दंपति ने बेटे के भविष्य के लिए लिया साथ रहने का फैसला

सात फेरों के पवित्र रिश्ते में आई दरार को दूर करने के लिए हाई कोर्ट ने मीडिएशन का सहारा लिया और इसका सकारात्मक परिणाम भी सामने आया। पति-पत्नी, जो तलाक के लिए कोर्ट तक जा पहुंचे थे, उन्होंने अंततः आपसी सहमति से साथ रहने का निर्णय लिया। इस समझौते में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उनके मासूम बेटे ने निभाई, जिसके भविष्य को ध्यान में रखते हुए दोनों ने एक बार फिर घर बसाने का फैसला किया।

रायगढ़ निवासी पति और जांजगीर-चांपा की महिला की शादी के दो साल बाद दोनों के बीच विवाद बढ़ने लगा, जिसके कारण पति ने रायगढ़ के परिवार न्यायालय में तलाक के लिए आवेदन दिया। परिवार न्यायालय ने 23 सितंबर 2017 को तलाक की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पति ने इस फैसले को चुनौती देते हुए वर्ष 2017 में हाई कोर्ट में अपील दायर की।

सेंटर में रिश्ते को सुलझाने का प्रयास

जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने मामले को हाई कोर्ट के मीडिएशन सेंटर भेजने का निर्देश दिया, जहां दंपति के बीच मध्यस्थता के माध्यम से संवाद स्थापित किया गया। मीडिएशन प्रक्रिया के दौरान दोनों के बीच बातचीत हुई और धीरे-धीरे समझौते की दिशा में प्रगति हुई।

बेटे के भविष्य की खातिर साथ रहने का निर्णय

मीडिएशन सेंटर के प्रयासों और बेटे के भविष्य के प्रति जिम्मेदारी को महसूस करते हुए पति-पत्नी ने आपसी सहमति से अपने रिश्ते को एक और मौका देने का निर्णय लिया। इस मामले ने हाई कोर्ट की मध्यस्थता प्रक्रिया के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाया है, जहां एक टूटते रिश्ते को बचाने में कामयाबी मिली है।

लगातार बातचीत से निकला रास्ता

मध्यस्थता केंद्र में मध्यस्थता विशेषज्ञ ने पहले दोनों पक्ष के अधिवक्ताओं से चर्चा की। इसके बाद याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी से अलग-अलग बात कर विवाद को समझने की कोशिश की। फिर दोनों को एक साथ बुलाकर बातचीत की। इस बीच मध्यस्थता विशेषज्ञ ने कई दौर की बातचीत की। आखिरकार दोनों अपने मतभेद भुलाकर साथ रहने पर राजी हो गए। अपने विवादों का निपटारा करते हुए दोनों ने लिखित समझौते पर हस्ताक्षर भी किए।

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